कठोर कानूनों के बावजूद सक्रिय हैं अवैध क्रिप्टो प्लेटफॉर्म: भारत के सामने बढ़ता वित्तीय और सुरक्षा संकट
PMLA के तहत रिपोर्टिंग इकाइयों की मान्यता के दो साल बाद भी विदेशी गैर-अनुपालन क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स का भारत में बेरोकटोक संचालन, राष्ट्रीय सुरक्षा और नियामकीय संतुलन पर गंभीर सवाल मार्च...

PMLA के तहत रिपोर्टिंग इकाइयों की मान्यता के दो साल बाद भी विदेशी गैर-अनुपालन क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स का भारत में बेरोकटोक संचालन, राष्ट्रीय सुरक्षा और नियामकीय संतुलन पर गंभीर सवाल
मार्च 2023 में केंद्र सरकार ने वर्चुअल डिजिटल एसेट (VDA) सेवाप्रदाता—जैसे क्रिप्टो एक्सचेंज, वॉलेट्स और कस्टोडियन—को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत रिपोर्टिंग इकाइयों के रूप में घोषित किया था। इसका उद्देश्य भारत की वित्तीय प्रणाली को मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से सुरक्षित बनाना और अंतरराष्ट्रीय निकाय FATF की सिफारिशों के अनुरूप कदम उठाना था।
हालांकि, दो वर्षों बाद भी यह स्पष्ट है कि कानून का अनुपालन करने वाले और उससे बचने वाले प्लेटफॉर्म्स के बीच गंभीर असंतुलन बना हुआ है। जहां भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंजों ने भारी लागत पर KYC प्रक्रिया, STR रिपोर्टिंग, और FIU-IND के साथ डेटा साझाकरण जैसे कदम उठाए, वहीं कई विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म आज भी भारतीय उपभोक्ताओं को बिना किसी कानूनी दायित्व के सेवाएं दे रहे हैं।
इन विदेशी प्लेटफॉर्म्स की उपस्थिति ने ‘अनियमित प्रतिस्पर्धा’ की स्थिति उत्पन्न कर दी है। वे टेलीग्राम जैसे चैनलों के ज़रिए यूज़र्स तक पहुँचते हैं, हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में मार्केटिंग करते हैं, और गोपनीयता व त्वरित सेवाओं का वादा कर उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं। इनमें KYC और AML जैसे अनुपालन न्यूनतम या अनुपस्थित हैं, जिससे उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ देश की वित्तीय सुरक्षा को भी खतरा है।
इन अवैध प्लेटफॉर्म्स का उपयोग पूंजी पलायन, कर चोरी और आतंकवादी फंडिंग जैसे गंभीर मामलों के लिए हो सकता है। वहीं, यूज़र्स साइबर फ्रॉड, फिशिंग और धोखाधड़ी के शिकार होकर वैधानिक सुरक्षा से वंचित रह जाते हैं।
सरकार ने कुछ मामलों में शो-कॉज़ नोटिस और कार्रवाई की शुरुआत की है, परंतु तकनीकी रूप से ये प्लेटफॉर्म URL ब्लॉकिंग और ऐप हटाने जैसे उपायों को चकमा देने में सक्षम हैं। इसीलिए केवल परंपरागत उपाय पर्याप्त नहीं रह गए हैं।
यह असंतुलन निवेशकों के मन में यह धारणा उत्पन्न कर रहा है कि कानून मानना घाटे का सौदा है, जबकि नियमों की अवहेलना करने वालों को छूट मिल रही है। इससे ना केवल घरेलू नवाचार को नुकसान हो रहा है, बल्कि भारत की FATF समीक्षा (2026) में वैश्विक छवि भी दांव पर लग सकती है।
अब सरकार को तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है:
- जियो-ब्लॉकिंग और पेमेंट गेटवे निगरानी
- FATF के “ट्रैवल रूल” का क्रियान्वयन
- एक अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स का गठन
- और यूज़र्स के लिए व्यापक चेतावनी अभियान
भारत के लिए यह ज़रूरी है कि वह दोहरे क्रिप्टो तंत्र से बचे—जहां एक ओर कुछ कंपनियां नियम मानें और दूसरी ओर कुछ पूरी तरह से कानून से मुक्त रहें। एक संतुलित और सख्त नियामकीय कार्यवाही ही क्रिप्टो क्षेत्र को सुरक्षित और स्थायी बना सकती है।
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