गुरुग्राम बनाम नोएडा: भारी बारिश में क्यों डूब जाता है एक शहर, और दूसरा रहता है ठीक?
योजनाबद्ध विकास और मजबूत जल निकासी प्रणाली ने नोएडा को बचाया, जबकि अनियोजित विस्तार और समन्वय की कमी ने गुरुग्राम को बनाया जलभराव का शिकार

मानसून की हर जोरदार बारिश के साथ, दिल्ली-एनसीआर के दो प्रमुख शहर—गुरुग्राम और नोएडा—की तस्वीरें बिलकुल अलग होती हैं। जहाँ एक तरफ गुरुग्राम अक्सर जलमग्न हो जाता है, वहीं नोएडा में आमतौर पर हालात अपेक्षाकृत बेहतर रहते हैं। ऐसा क्यों है, जब दोनों ही शहर लगभग एक साथ विकसित हुए हैं? इसका राज उनके नगर नियोजन और जल निकासी प्रबंधन के इतिहास और सरकारों की कार्यप्रणाली में छिपा है।
नोएडा: नियोजित विकास का मॉडल
नोएडा (न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी) को एक ग्रीनफील्ड परियोजना के तहत विकसित किया गया था। इसका मतलब यह है कि यह शहर शुरू से ही एक योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया।
- शुरुआती योजना: नोएडा प्राधिकरण की स्थापना 1976 में उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 के तहत हुई थी। इसके विकास की नींव में ही शहरी नियोजन विशेषज्ञों (Urban Management Experts) का हाथ था। उन्होंने आवासीय या व्यावसायिक परियोजनाओं को शुरू करने से पहले शहर के बुनियादी ढांचे — सड़कें, सीवेज सिस्टम, बिजली, और सबसे महत्वपूर्ण, बरसाती जल निकासी तंत्र (Stormwater Drainage System) — को प्राथमिकता दी।
- यूपी सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण: उत्तर प्रदेश सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में, नोएडा प्राधिकरण ने यह सुनिश्चित किया कि हर नए विकास के साथ उचित जल निकासी संरचनाएं बनाई जाएं। इसमें मुख्य नालियों का नेटवर्क, सहायक नालियाँ और जल संचयन (water harvesting) के उपाय शामिल थे। शहर की हर परियोजना को इस व्यापक योजना के अनुरूप होना आवश्यक था।
- नतीजा: इसी कारण आज भी नोएडा में भारी बारिश के बावजूद जलभराव की समस्या गुरुग्राम जितनी गंभीर नहीं होती। यहाँ की सड़कें, भले ही कुछ स्थानों पर पानी जमा हो जाए, लेकिन मुख्य रूप से जल निकासी प्रणाली कुशलता से काम करती है।
गुरुग्राम: अनियोजित विस्तार और PPP मॉडल की खामियां
इसके विपरीत, गुरुग्राम (जिसे पहले गुड़गांव के नाम से जाना जाता था) का विकास एक अलग और अक्सर अनियोजित राह पर चला।
- PPP मॉडल का प्रभाव: हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम के विकास में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP मॉडल) को बड़े पैमाने पर अपनाया। निजी बिल्डरों को बड़े पैमाने पर परियोजनाएं विकसित करने की अनुमति दी गई।
- नियमों की अनदेखी: दुर्भाग्य से, कई निजी बिल्डरों ने तीव्र गति से विकास के चक्कर में नगर नियोजन के सख्त मापदंडों का पालन नहीं किया। उन्होंने इमारतों, मॉल और हाउसिंग सोसाइटियों का निर्माण तो तेजी से किया, लेकिन बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से जल निकासी प्रणालियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। प्राकृतिक जलमार्गों और तालाबों पर भी अतिक्रमण हुआ, जिससे पानी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा आई।
- अधिकार क्षेत्र की समस्या: गुरुग्राम में कई विकास प्राधिकरण और नगर निगम हैं, जिनके बीच समन्वय की कमी अक्सर देखी जाती है। DLF, हुडा (HSVP), और गुरुग्राम नगर निगम (MCG) जैसे कई निकायों के अधिकार क्षेत्र आपस में ओवरलैप होते हैं, जिससे जल निकासी जैसी समस्याओं के समाधान में भ्रम और देरी होती है।
- पुराने बुनियादी ढांचे पर दबाव: गुरुग्राम एक पुराने गाँव से तेजी से एक महानगर में बदला, लेकिन इसका पुराना और अपर्याप्त जल निकासी बुनियादी ढाँचा इस तीव्र शहरीकरण का भार नहीं सह पाया।
- नतीजा: इसका प्रत्यक्ष परिणाम हर मानसून में देखने को मिलता है, जब शहर की सड़कें नदियां बन जाती हैं, ट्रैफिक रुक जाता है और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
राज्यों की सरकारों की भूमिका: तुलनात्मक विश्लेषण
- उत्तर प्रदेश सरकार (नोएडा): यूपी सरकार ने नोएडा के विकास में अधिक केंद्रीयकृत और नियंत्रित दृष्टिकोण अपनाया। नोएडा प्राधिकरण को योजना, वित्तपोषण और कार्यान्वयन की पर्याप्त शक्तियाँ दी गईं, जिससे एक समग्र और एकीकृत शहरी विकास सुनिश्चित हुआ। जल निकासी प्रणाली को शहरी विकास का एक अनिवार्य हिस्सा माना गया, न कि एक बाद का विचार।
- हरियाणा सरकार (गुरुग्राम): हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम में निजी निवेश को अधिक बढ़ावा दिया, जिससे आर्थिक विकास तो हुआ, लेकिन इसने अनियंत्रित निर्माण और बुनियादी ढांचे की अनदेखी की समस्याओं को जन्म दिया। जल निकासी प्रणाली का विकास टुकड़ों में हुआ और अक्सर मौजूदा प्राकृतिक जलमार्गों की उपेक्षा की गई। सरकार ने बाद में सुधार के प्रयास किए, लेकिन तब तक कई नुकसान हो चुके थे।
नोएडा और गुरुग्राम की अलग-अलग कहानियाँ हमें बताती हैं कि कुशल नगर नियोजन और मजबूत सरकारी विनियमन शहरी विकास में कितने महत्वपूर्ण हैं। जहाँ नोएडा ने शुरुआती योजना और मजबूत कार्यान्वयन के माध्यम से एक टिकाऊ जल निकासी प्रणाली का निर्माण किया, वहीं गुरुग्राम के अनियोजित विस्तार और निजी हितों के हावी होने ने उसे हर साल मानसून में मुश्किलों का सामना करने पर मजबूर कर दिया है। यह अन्य शहरों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि बुनियादी ढांचे को नजरअंदाज करके किया गया तीव्र विकास अंततः निवासियों के लिए महंगी कीमत वसूलता है।
ये भी पढे :- 11:11 पर मेनिफेस्टेशन क्यों? क्या है इसके पीछे का रहस्य?
Leave a Comment