भारत की ईरान नीति की अग्निपरीक्षा: चाबहार और INSTC पर बन सकता है भू-राजनीतिक दबाव

नई दिल्ली: ईरान और इज़रायल के बीच बढ़ते टकराव ने भारत की दो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं—चाबहार पोर्ट और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC)—की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता खड़ी कर दी है। भारत ने अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक सीधा व्यापारिक संपर्क स्थापित करने के उद्देश्य से इन योजनाओं में 550 मिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
ईरान पर हमलों की खबरों से बढ़ी चिंता
हालांकि अब तक इज़रायल द्वारा किसी भी ईरानी बंदरगाह पर सीधा हमला नहीं हुआ है, लेकिन ईरान के तटीय क्षेत्रों पर हमले होने की रिपोर्ट्स सामने आई हैं। इससे भारत को यह डर सता रहा है कि उसकी रणनीतिक परियोजनाएं अस्थिरता का शिकार हो सकती हैं।
भारत की रणनीतिक भागीदारी और निवेश
भारत सरकार की कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) को मई 2024 में चाबहार के शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के संचालन की जिम्मेदारी 10 वर्षों के लिए दी गई है।
- चाबहार में प्रत्यक्ष निवेश: 85 मिलियन डॉलर
- एक्जिम बैंक द्वारा क्रेडिट लाइन: 150 मिलियन डॉलर
- चाबहार-जाहेदान रेलवे के लिए अतिरिक्त ऋण: 400 मिलियन डॉलर
अफगानिस्तान की निर्भरता और पाकिस्तान की रणनीति
तालिबान शासित अफगानिस्तान भी भारत की तरह कराची पोर्ट पर अपनी निर्भरता खत्म करना चाहता है। ऐसे में चाबहार पोर्ट और INSTC उसके लिए एक बेहतर विकल्प बन सकते हैं। लेकिन इन परियोजनाओं पर संकट आने की स्थिति में पाकिस्तान को अफगानिस्तान की इस मजबूरी का रणनीतिक लाभ मिल सकता है।
भारत-ईरान कूटनीतिक सहयोग की परीक्षा
जनवरी 2025 में हुई भारत-ईरान की 19वीं फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन में INSTC और चाबहार पोर्ट को लेकर सहयोग बढ़ाने की बात की गई थी। लेकिन अगर तनाव बढ़ा और अमेरिका जैसे देशों की इसमें प्रत्यक्ष भागीदारी हुई, तो भारत की इन परियोजनाओं पर बड़ा असर पड़ सकता है।
निजी कंपनियों की रुचि से मिल रही उम्मीद
अडानी ग्रुप और एस्सार जैसी कंपनियां चाबहार में निवेश की संभावनाएं तलाश रही हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह बंदरगाह भारत के लॉजिस्टिक्स नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भारत के लिए जरूरी रणनीतिक संतुलन और सतर्कता
चाबहार पोर्ट और INSTC केवल व्यापारिक मार्ग नहीं, बल्कि भारत की भू-राजनीतिक रणनीति के भी अहम स्तंभ हैं। वर्तमान परिस्थितियों में भारत को चाहिए कि वह:
- ईरान के साथ कूटनीतिक संपर्क और मजबूत करे
- वैकल्पिक मार्गों पर रणनीतिक सोच विकसित करे
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करे
इन कदमों से न केवल परियोजनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक स्थिति भी मजबूत होगी।
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