वो आवाज़ जिसने एक दौर को परिभाषित किया — मधुर, शुद्ध और भावनाओं से भरी हुई।
सुलक्षणा पंडित, अपनी सुरीली गायकी और सादगी भरे अभिनय के लिए जानी जाने वाली कलाकार, खुद एक ऐसी कहानी बन गईं जो किसी दुखद फिल्म जैसी थी — खूबसूरत, गहरी, लेकिन अधूरी।
शोहरत और सफलता के पीछे छिपी थी एक प्रेम कहानी, जो कभी अपने अंजाम तक नहीं पहुंची। यह कहानी थी सच्चे प्यार की, चुप दर्द की और किस्मत केमोड़ की।
विडंबना यह रही कि सुलक्षणा का निधन उसी तारीख़ को हुआ, जिस दिन उनके जीवन का प्यार, संजीव कुमार, इस दुनिया को छोड़ गया था।
सुनहरी सफलता और छिपा हुआ दर्द
1970 और 80 के दशक में सुलक्षणा पंडित हिंदी सिनेमा की सबसे लोकप्रिय पार्श्व गायिकाओं और अभिनेत्रियों में से एक थीं।
उनकी नाज़ुक शक्ल, मोहक मुस्कान और कोमल व्यक्तित्व ने लाखों दिलों को जीता।
लेकिन दुनिया के इस प्यार के बावजूद, उनका दिल सिर्फ एक शख्स के लिए धड़कता था — संजीव कुमार, जिनके साथ उन्होंने 1975 की फिल्म उलझन में काम किया।
सुलक्षणा के लिए यह पहली नज़र का प्यार था। मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था, क्योंकि उस समय संजीव कुमार “ड्रीम गर्ल” हेमा मालिनी के प्यार में डूबे हुए थे।
एकतरफा प्यार और टूटे सपने
संजय कुमार ने हेमा मालिनी को शादी का प्रस्ताव तक दिया था, मगर हेमा ने विनम्रता से इंकार कर दिया, क्योंकि वह पहले से ही धर्मेंद्र से प्यार करती थीं।
दिल टूटे संजीव के दर्द में सुलक्षणा उनका सहारा बनीं — एक दोस्त, एक हमदर्द।
उनकी दोस्ती धीरे-धीरे गहराई में बदली, लेकिन जब सुलक्षणा ने अपने दिल की बात कही, तो संजीव ने नरमी से उनके प्यार को ठुकरा दिया।
यह इंकार सुलक्षणा के लिए असहनीय था।
अंधेरे में ढलती ज़िंदगी
टूटे दिल के साथ उन्होंने खुद को दुनिया से अलग कर लिया।
फिल्मों से दूरी बनाकर वो अपनी मां के साथ मुंबई के एक छोटे से फ्लैट में रहने लगीं।
धीरे-धीरे वो अवसाद में डूब गईं।
1985 में जब संजीव कुमार का निधन हुआ, तो सुलक्षणा पूरी तरह टूट गईं।
जिस शख्स से उन्होंने बेइंतेहा मोहब्बत की थी, उसके जाने के बाद उनके जीवन की रोशनी बुझ गई।
खबरों के अनुसार, उन्होंने मानसिक संतुलन खो दिया और कुछ समय तक अपने करीबी लोगों को भी पहचान नहीं पाईं।
“मैं लगभग खुद को खत्म कर चुकी थी…”
1999 के एक दुर्लभ इंटरव्यू में सुलक्षणा ने कहा था —
“संजय के जाने के बाद मैं डिप्रेशन में चली गई थी। मैं लगभग खुद को खत्म कर चुकी थी, लेकिन ईश्वर की कृपा से बच गई। आज भी उस सदमे से पूरी तरह उबर नहीं पाई हूं। मैं अपना कमरा बंद रखती हूं और पुराने गाने सुनती हूं — इससे मुझे जीने की हिम्मत मिलती है।”
माता-पिता के निधन के बाद उन्होंने अपनी बहन, अभिनेत्री विजेता पंडित के साथ रहना शुरू किया, लेकिन अतीत की परछाइयां कभी उनका पीछा नहीं छोड़ पाईं।
एक अनोखा अंत — या शायद एक मिलन
आख़िरकार, ज़िंदगी ने पूरा चक्कर लगा लिया।
जिस महिला ने प्रेम और विरह पर अनगिनत गीत गाए, वह उसी दिन दुनिया से चली गई जिस दिन उनके प्रिय संजीव कुमार का निधन हुआ था।
मानो किस्मत, जिसने उन्हें जीवन में जुदा रखा, ने मृत्यु के बाद दोनों को एक कर दिया —
दो आत्माएं, जो अधूरे प्रेम में भी अमर हो गईं।