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World Mental Health Day 2025: करवाचौथ के दिन पुरुषों की मानसिक सेहत पर सवाल, जानें कितने स्वस्थ हैं हमारे समाज के ‘मजबूत’ कहलाने वाले पुरुष

करवाचौथ पर जब महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, तब सवाल उठता है कि क्या पुरुष मानसिक रूप से भी उतने ही सुरक्षित और स्वस्थ हैं?

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2025

आज 10 अक्तूबर को दुनिया भर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) मनाया जा रहा है। इस दिन का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना और समाज में मानसिक समस्याओं को समझते हुए उनके समाधान पर जोर देना है। दिलचस्प बात यह है कि इस बार यह दिन करवाचौथ के पर्व के साथ पड़ रहा है। जब महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना कर व्रत रख रही हैं, तब बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई भारतीय पुरुष मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं?

भारतीय पुरुष और मानसिक स्वास्थ्य की सच्चाई

भारतीय समाज में पुरुषों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि उन्हें मजबूत, कमाऊ और भावनात्मक रूप से कठोर होना चाहिए। “मर्द रोते नहीं” और “मर्द को दर्द नहीं होता” जैसी सोच पुरुषों को अपनी भावनाएं दबाने पर मजबूर करती है। नतीजा यह होता है कि मानसिक समस्याओं को वे छिपाते रहते हैं और समय रहते इलाज नहीं ले पाते।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या करने वालों में लगभग 70% पुरुष हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि पुरुषों पर मानसिक दबाव महिलाओं की तुलना में कहीं ज्यादा है।

क्यों पुरुषों में आत्महत्या का खतरा अधिक

मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष आत्महत्या के अधिक मामलों का हिस्सा इसलिए होते हैं क्योंकि वे क्षणिक आवेश में आकर कठोर कदम उठा लेते हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी के अनुसार, आत्महत्या का प्रयास महिलाओं में ज्यादा होता है, लेकिन जान गंवाने वालों में पुरुषों की संख्या कई गुना अधिक है। महिलाएं भावनात्मक रूप से सोचती हैं और अंतिम कदम उठाने से पहले रुक जाती हैं, जबकि पुरुष अचानक और हिंसक तरीकों का सहारा लेते हैं।

वैश्विक स्तर पर भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है। ऑस्ट्रेलिया में पुरुषों की आत्महत्या दर महिलाओं से तीन गुना है, अमेरिका में 3.5 गुना और रूस व अर्जेंटीना में तो चार गुना तक अधिक है।

अवसाद के कारण

युवाओं में अवसाद अक्सर भविष्य की चिंता, पढ़ाई और करियर को लेकर दबाव से जुड़ा होता है। वहीं, महिलाओं में इसका बड़ा कारण घरेलू हिंसा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हर 10 में से करीब तीन लोग जीवन में किसी न किसी मानसिक समस्या का सामना करते हैं। अगर समय रहते इनकी पहचान कर मदद दी जाए तो अधिकांश मामलों को रोका जा सकता है।

पुरुषों की झिझक और सामाजिक कलंक

पुणे स्थित अस्पताल की मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सुरभि गोस्वामी बताती हैं कि छोटे शहरों और कस्बों में पुरुषों की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति तेजी से बिगड़ रही है, लेकिन वहां इस पर बात करना अब भी वर्जित समझा जाता है। अधिकतर पुरुष काउंसलिंग या थेरेपी लेने से हिचकिचाते हैं क्योंकि उन्हें डर रहता है कि लोग उन्हें “पागल” कहेंगे। यही कलंक उन्हें सही समय पर मदद लेने से रोक देता है।

लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी

मनोचिकित्सकों के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के संकेतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लगातार नींद न आना, भूख खत्म होना, चिड़चिड़ापन, अकेलापन महसूस करना, सामाजिक दूरी बनाना और मौत की बातें करना ऐसे लक्षण हैं जिन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

समाधान क्या है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि सही समय पर बातचीत, काउंसलिंग और दवाओं से मानसिक स्वास्थ्य की अधिकांश समस्याएं हल की जा सकती हैं। नियमित व्यायाम, तनाव को कम करने वाले शौक और अपनों से संवाद करना भी मानसिक सेहत को मजबूत बनाता है।

करवाचौथ पर जब महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना कर रही हैं, तब यह भी सोचना जरूरी है कि पुरुषों की मानसिक उम्र और मानसिक स्वास्थ्य कितना सुरक्षित है। केवल शारीरिक नहीं, मानसिक मजबूती भी जीवन का अहम आधार है।

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