एक साधारण परिवार से उठकर बने राष्ट्र के राष्ट्रपति और आदर्श शिक्षक
02 सितंबर 2025, नई दिल्ली
भारत में हर साल 5 सितंबर को Teacher’s Day मनाया जाता है। यह दिन केवल शिक्षकों को सम्मान देने का अवसर नहीं है, बल्कि उस महान विभूति को स्मरण करने का भी है, जिनकी जयंती इस दिन होती है – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। वे न केवल एक उत्कृष्ट शिक्षक और दार्शनिक थे, बल्कि भारत के दूसरे राष्ट्रपति भी बने। उनकी जीवन यात्रा इस बात का प्रमाण है कि एक शिक्षक सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह राष्ट्र की दिशा और भविष्य तय करने में भी अहम भूमिका निभाता है।
प्रारंभिक जीवन
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के एक साधारण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनकी पढ़ाई में गहरी रुचि थी। उन्होंने दर्शनशास्त्र को अपना विषय चुना और गहन अध्ययन कर उसे पश्चिमी दुनिया तक पहुँचाया।
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शिक्षक के रूप में योगदान
वे मद्रास, मैसूर और कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्यापन से जुड़े रहे। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना है। सरल भाषा और व्यावहारिक दृष्टिकोण से पढ़ाने की उनकी शैली छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थी। उन्होंने विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर गर्व करना सिखाया।
राजनीति और कूटनीति में भूमिका
शिक्षक की भूमिका निभाने के साथ-साथ डॉ. राधाकृष्णन ने राजनीति और कूटनीति में भी अहम योगदान दिया। वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे, फिर उपराष्ट्रपति और अंततः राष्ट्रपति बने। ऊँचे पदों पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने सादगी और शिक्षक के आदर्शों को कभी नहीं छोड़ा।
शिक्षक दिवस की शुरुआत
1962 में जब वे राष्ट्रपति बने, तो उनके विद्यार्थियों और मित्रों ने उनसे जन्मदिन मनाने की इच्छा जताई। इस पर उन्होंने कहा –
“यदि आप सच में मेरा जन्मदिन मनाना चाहते हैं, तो इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाइए।”
इसके बाद से हर साल 5 सितंबर को पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन हमें यह संदेश देता है कि शिक्षक केवल ज्ञान देने वाला ही नहीं होता, बल्कि वह समाज और राष्ट्र की नींव रखने वाला सच्चा निर्माता होता है।
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