याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा – “क्या पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाना प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए?”
नई दिल्ली: वैश्विक शांति दूत और समाजसेवी डॉ. के.ए. पॉल ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि अवैध सट्टेबाजी ऐप्स पर प्रतिबंध संबंधी उनकी याचिका पर तुरंत सुनवाई की जाए, क्योंकि न्यायिक देरी युवाओं और उनके परिवारों को भारी नुकसान पहुँचा रही है।
डॉ. पॉल ने कहा कि 1 अगस्त 2025 को पीठ ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए आदेश सुरक्षित रखे थे। न्यायालय ने उस समय यह स्वीकार किया था कि सट्टेबाजी ऐप्स ने देश के युवाओं में आर्थिक नुकसान और आत्महत्याओं की गंभीर समस्या को जन्म दिया है। बावजूद इसके, यह मामला दो बार बिना किसी कारण बताए सूची से हटा दिया गया।
उन्होंने न्यायपालिका से जवाबदेही तय करने और शीघ्र कार्रवाई करने की अपील करते हुए कहा, “क्या भारत के उन लाखों परिवारों को न्याय दिलाने से अधिक कोई महत्वपूर्ण मामला हो सकता है, जिन्होंने अपने कमाने वाले सदस्य को इन अवैध सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म्स की वजह से खो दिया है?”
याचिका में डॉ. पॉल ने न केवल सट्टेबाजी ऐप संचालकों के खिलाफ, बल्कि उन 1,100 से अधिक मशहूर हस्तियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की मांग की है, जिन्होंने आर्थिक लाभ के लिए इन ऐप्स का प्रचार करते आए हैं। उन्होंने विजय देवरकोंडा, मंजू लक्ष्मी, राणा दग्गुबाती और सचिन तेंदुलकर जैसे नामों का उल्लेख करते हुए कहा कि देश की जानी-मानी हस्तियां ऐसे प्लेटफॉर्म्स को कैसे बढ़ावा दे सकती हैं, जिनसे असंख्य परिवार बर्बाद हुए हैं।
डॉ. पॉल ने यह भी मांग की कि इन सेलिब्रिटीज द्वारा प्राप्त विज्ञापन राशि को पीड़ित परिवारों को मुआवजे के रूप में दिया जाए। साथ ही उन्होंने गूगल और एप्पल जैसी वैश्विक कंपनियों की आलोचना की, जो अपने प्लेटफॉर्म्स पर अवैध सट्टेबाजी ऐप्स को अनुमति देती हैं। उन्होंने कहा, “अगर अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत में काम करना चाहती हैं, तो उन्हें भारतीय कानूनों का पालन करना होगा।”
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का आभार व्यक्त करते हुए डॉ. के.ए. पॉल ने कहा कि सरकार ने उनकी याचिका को गंभीरता से लेते हुए ऑनलाइन सट्टेबाजी पर रोक लगाने के लिए कदम उठाए हैं और इस संबंध में संसद में विधेयक भी पेश किया गया है। लेकिन इसके बावजूद भी जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उन्हें अब तक कोई राहत नहीं मिल पाई है।
डॉ. पॉल ने कहा, “संसद ने तो कानून बना दिया, लेकिन पीड़ित परिवार अब भी न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं। मेरी 18 याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में अभी तक लंबित हैं।” उन्होंने कहा है कि वे तब तक इस कानूनी और नैतिक लड़ाई को जारी रखेंगे, जब तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिल जाता।