“वे हम ही हैं”: पहलगाम आतंकी हमले के बाद महिला की पोस्ट ने झकझोरा देश को


“हम भी हो सकते थे उनमें”: हमले से कुछ दिन पहले उसी जगह बैठी थी मालविका सोमण की परिवार संग। अब उनकी पोस्ट देश के दुख और एकजुटता की आवाज बन चुकी है।

नई दिल्ली, पहलगाम, कश्मीर की वादियों में हुए आतंकी हमले से 24 दिन पहले ही मालविका सोमण अपने 30वें जन्मदिन के मौके पर अपने परिवार संग उसी जगह बैठी थीं — जो अब 26 मासूम जिंदगियों की मौत की गवाही दे रहा है। यह बर्बर हमला न सिर्फ घाटी को हिला गया है, बल्कि पूरे देश को शोक और आत्ममंथन की स्थिति में ला खड़ा किया है।

लेकिन इस त्रासदी के बीच भी मालविका के लिए कश्मीर की यादें डर नहीं, बल्कि वहां के लोगों की गर्मजोशी और मेहमाननवाज़ी से जुड़ी हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा:

“सिर्फ़ 24 दिन पहले, अपने 30वें जन्मदिन पर, मैं और मेरा परिवार इसी पहलगाम में, इसी जगह बैठे थे — जहां कल आतंकी हमला हुआ।
ये सोचकर सिहरन होती है कि हम भी उन 26 मासूमों में हो सकते थे। वे हम ही हैं! बिल्कुल हमारी तरह!
लेकिन मैं एक बात ज़रूर कहना चाहती हूं — कश्मीर के लोग बेहद दिलदार और प्यारे हैं। उनकी मेहमाननवाज़ी, अपनापन और प्यार अविश्वसनीय है। किसी और जगह ऐसा स्वागत नहीं मिला।”

मालविका आगे लिखती हैं कि बीते कुछ वर्षों में पर्यटन ने कश्मीर में आशा की एक नई किरण जगाई थी। वहां के लोग अपनी ज़िंदगी बेहतर बना रहे थे। लेकिन आतंकवाद इस उम्मीद को छीनना चाहता है — उन्हें फिर अंधेरे में धकेलना चाहता है।

“हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम कश्मीर के साथ हैं। आतंक के खिलाफ हैं।
हम आवाज़ उठाएंगे। जवाब देंगे — एकजुटता, शांति और ताकत से।”

उनकी यह पोस्ट अब सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं रही। यह भावना पूरे देश की है — लाखों लोगों की, जो यह सोचकर सिहर उठे कि “हम भी हो सकते थे।”

कश्मीर में पर्यटन बना उम्मीद की किरण

हाल के वर्षों में कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में जबरदस्त इज़ाफा देखा गया है, जिससे वहां की आर्थिक स्थिति में सुधार आया और स्थानीय लोगों को सम्मानजनक आजीविका मिली।

जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार:

  • 2022 में लगभग 26.7 लाख पर्यटक पहुंचे।
  • 2023 में यह संख्या बढ़कर 27.1 लाख हो गई।
  • 2024 में लगभग 30 लाख पर्यटक आए, जो अब तक का रिकॉर्ड है।

इस बढ़ते पर्यटन ने होटल व्यवसायियों, टैक्सी चालकों, हस्तशिल्पियों और टूर गाइड्स को नई ज़िंदगी दी है। यह सिर्फ रोजगार नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और जुड़ाव का माध्यम बन गया है।

आतंक का डर लौटे, इससे पहले देश की एकता दे जवाब

जैसे-जैसे आतंक फिर डर फैलाने की कोशिश करता है, देश एक बार फिर मजबूती से खड़ा होता दिख रहा है। हर कोना यही कह रहा है:
“हम डरेंगे नहीं। हम कश्मीर का साथ नहीं छोड़ेंगे। हमें वह अपनापन याद है — वो मुस्कानें, वो कहानियां, वो साझा खाना — हम उन्हें नहीं भूलेंगे।”

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