सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला—लहसून को फल-सब्जी नहीं, मसाले की श्रेणी में माना; 9 साल से हो रही अवैध वसूली पर लगा विराम
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मध्यप्रदेश मंडी बोर्ड के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें लहसून को फल और सब्जियों की श्रेणी में रखकर आढ़त वसूली जा रही थी। अदालत ने स्पष्ट कहा कि लहसून मसाला है और उस पर आढ़त वसूली करना कानून के खिलाफ है।
फैसले की मुख्य बातें:
- 13 फरवरी 2015 को जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त किया।
- कोर्ट ने कहा, “लहसून को फल-सब्जी मानना और उस पर आढ़त लेना अवैध है।”
- अब किसानों से रोज़ाना वसूले जा रहे करीब 2 करोड़ रुपये की अवैध आढ़त पर पूरी तरह रोक लग गई है।
19 साल की लड़ाई: किसान मुकेश सोमानी की जीत
इस फैसले के पीछे है इंदौर निवासी किसान और व्यापारी मुकेश सोमानी की दो दशक पुरानी लड़ाई।
वर्ष 2006 में उन्होंने देखा कि प्रदेश की 258 में से केवल 4 मंडियों में आढ़त प्रथा लागू है, जबकि बाकी मंडियों में सीधी सरकारी व्यवस्था के तहत कारोबार हो रहा है। यही असमानता उन्हें अन्यायपूर्ण लगी और उन्होंने कानूनी संघर्ष की शुरुआत की।
न्याय के पथ पर साथियों का योगदान: इस लंबे संघर्ष में अधिवक्ता अभिषेक तुगनावत ने प्रारंभ से ही श्री सोमानी का साथ दिया।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. हर्ष पाठक और अभिषेक तुगनावत ने मिलकर किसानों की आवाज को मजबूती से रखा, जिसका परिणाम आज पूरे प्रदेश के किसानों को राहत के रूप में मिला है।
अगला कदम: किसानों को उनका पैसा दिलाना
मुकेश सोमानी ने कहा,
“यह केवल एक कानूनी जीत नहीं है, यह किसानों के आत्मसम्मान की वापसी है। अब हमारा अगला लक्ष्य यह होगा कि 2016 से 2025 तक लहसून पर जो लगभग 20,000 करोड़ रुपये की अवैध आढ़त वसूली गई है, वह किसानों को वापस दिलाई जाए।”
साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि अगली कानूनी लड़ाई मध्यप्रदेश में प्याज पर लगाई गई 5% आढ़त प्रथा को खत्म कराने की होगी।
संगठित किसान ही असली ताकत
इस निर्णय ने यह साबित कर दिया है कि जब किसान जागरूक होकर संगठित होते हैं, तो व्यवस्था को भी झुकना पड़ता है।
मुकेश सोमानी और अभिषेक तुगनावत की यह जीत सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे किसान समुदाय की आवाज़ है—जिसे अब देशभर में सुना जा रहा है।
