Rupee collapses against the dollar!

डॉलर के सामने रुपया धराशायी! ₹88.3 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर, अर्थव्यवस्था के लिए बढ़ा खतरा?

₹88.3 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर पहुँचा रुपया; केंद्र व राज्य सरकारें निर्यात बढ़ाने, निवेश आकर्षित करने और ऊर्जा नीति सुधार के लिए उठा रही पहलें

नई दिल्ली, भारत में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है और हाल के दिनों में यह अपना अब तक का न्यूनतम स्तर—लगभग ₹88.3 प्रति डॉलर—पहुंच गया है। क्यों हो रही ये गिरावट, सरकारें इस पर क्या कर रही हैं, और आगे क्या नीतियाँ अपनाई जा सकती हैं।

गिरावट के मुख्य कारण

अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव:
अमेरिका ने भारत पर आयात वस्तुओं पर 50% तक की टैरिफ बढ़ा दी है, जिससे भारतीय निर्यात वस्त्र, आभूषण जैसे प्रमुख क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। इससे विदेशी पूंजी प्रवाह में गिरावट और रुपये पर दबाव बढ़ा है।

विदेशी संस्थागत निवेश (FIIs) का बहिर्वाह:
इस साल अब तक विदेशी निवेशकों ने भारत से मोचन शुरू कर दिया है, जिससे रुपए पर दबाव और बढ़ा है।

तेल आदि कल-पदार्थों की उच्च आयात मांग:
भारत अपनी अधिकांश तेल गिरवी राशि से आयात करता है। इस अवधि में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने डॉलर की मांग को बढ़ाकर रुपये पर दबाव डाला है।

अंतर्राष्ट्रीय डॉलर की मजबूती एवं फेडरल रिजर्व की नीतियाँ:
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर मजबूत हो रहा है और फेड रेड्यू को स्थगित होने के संकेत दे रहा है, जिससे ईएम (Emerging Market) मुद्राओं पर दबाव बना है।

आरबीआई का हस्तक्षेप:
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रुपये को गिरने से रोकने के लिए विदेशी मुद्रा में $3.6 अरब तक बिक्री की है, लेकिन इस गिरावट को पूरी तरह रोकना चुनौतीपूर्ण रहा है।

सरकारी और केंद्रीय बैंक की पहलें

RBI की मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप:
रुपये को और गिरने से बचाने के लिए RBI ने स्पॉट और NDF (Non-deliverable forwards) माध्यम से हस्तक्षेप को तेज किया है।

निर्यात सहायता एवं व्यापार विविधीकरण:
केंद्र सरकार निर्यातक उद्योगों को समर्थन देने का ऐलान कर चुकी है और विभिन्न देशों (जैसे यूके, ऑस्ट्रेलिया, UAE) के साथ व्यापार समझौते मजबूत कर रही है।

राज्य सरकारों का योगदान:
राज्यों में हस्तनिर्मित और कृषि उद्योगों को समर्थन पैकेज, सब्सिडी और आसान कर्ज उपलब्ध कराने जैसे उपाय सामने आए हैं ताकि स्थानीय उत्पादक टिक सकें।

भविष्य के समाधान और नीति सुझाव

समस्या समभावित समाधान
करंट खाता घाटा और निर्यात दबाव निर्यात क्षेत्र में विविधीकरण, आयात कम करके करंट खाता सुधारा जा सकता है
विदेशी पूंजी बहिर्वाह घरेलू पूंजी को आकर्षित करने के लिए निवेशकों को सुरक्षा व विश्वास देना
मुद्रा अस्थिरता RBI की विश्वासपूर्ण मुद्रा विनियमन नीतियाँ
तेल निर्भरता ऊर्जा मिश्रण में घरेलू और वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा

रुपया का गिरना संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तनाव, निवेश प्रवाह की अस्थिरता, तेल आयात निर्भरता और वैश्विक वित्तीय स्थितियों से विक्षिप्त है। केंद्र और राज्य मिलकर निर्यात प्रोत्साहन, ऊर्जा नीति में सुधार और वित्तीय स्थिरता उपायों की दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन यह चुनौती दीर्घकालीन रणनीतियों और समन्वित कार्रवाई की मांग करती है।

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