नवरात्रि 2025 का दूसरा दिन: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, महत्व और व्रत विधि

शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। आज नवरात्रि का दूसरा दिन (द्वितीया तिथि) है, जो मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। इस वर्ष नवरात्रि 22 सितंबर से आरंभ हुई और 2 अक्टूबर को दशहरे के साथ संपन्न होगी, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और कथा

मां ब्रह्मचारिणी, देवी पार्वती का तपस्विनी रूप हैं। मान्यता है कि उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। वर्षों तक केवल फल-पत्तियों पर जीवित रहकर और कठोर व्रत कर, उन्होंने अद्भुत धैर्य और तप का परिचय दिया। इसी कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। उनका रूप साधना, संयम और अनुशासन का संदेश देता है।

पूजा का महत्व

दूसरे दिन की उपासना से साधक को आंतरिक शक्ति, ज्ञान, वैवाहिक सुख, विद्या में सफलता और आध्यात्मिक प्रगति की प्राप्ति होती है। देवी को सामान्यतः सफेद वस्त्र धारण किए हुए दर्शाया जाता है, उनके हाथ में जपमाला और कमंडलु होता है, जो सादगी और पवित्रता का प्रतीक है।

आज का शुभ रंग

नवरात्रि के दूसरे दिन का रंग लाल माना गया है। यह रंग ऊर्जा, साहस और प्रेम का प्रतीक है। श्रद्धालु लाल वस्त्र धारण कर पूजा करते हैं ताकि सकारात्मकता और उत्साह जीवन में आए।

पूजा विधि

प्रातः स्नान कर altar या पूजास्थल को शुद्ध करें।

मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

प्रसाद में खीर, चावल, चीनी और फल अर्पित करें।

यदि पहले दिन घटस्थापना की हो, तो कलश की सेवा जारी रखें।

दीपक, धूप जलाकर आरती करें और भक्ति गीत गाएं।

मंत्र और व्रत नियम

व्रत में केवल फल, दूध, मेवा और कुट्टू से बने व्यंजन ग्रहण करें।

अनाज, प्याज और लहसुन से परहेज़ करें।

सांस्कृतिक और स्वास्थ्य दृष्टि से महत्व

देशभर में इस दिन गरबा और डांडिया की धूम रहती है, वहीं बंगाल में भव्य दुर्गा पंडाल सजते हैं। व्रत का वैज्ञानिक पहलू भी माना जाता है कि यह शरीर को शुद्ध करता है और मानसिक अनुशासन सिखाता है।

FAQs: नवरात्रि का दूसरा दिन

प्र. मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं और क्यों पूजी जाती हैं?
वे मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं। उनकी पूजा से धैर्य, ज्ञान और आत्मबल प्राप्त होता है।

प्र. दूसरे दिन लाल रंग पहनने का क्या महत्व है?
लाल रंग साहस और ऊर्जा का प्रतीक है। इसे धारण करने से सकारात्मकता आती है।

प्र. पूजा की मुख्य विधि क्या है?
सुबह स्नान, वेदी की शुद्धि, भोग अर्पण, मंत्र जप और आरती करना।

प्र. व्रत में क्या खा सकते हैं?
फल, दूध, दही, सूखे मेवे और कुट्टू का आटा। अनाज, प्याज और लहसुन वर्जित हैं।

प्र. कौन सा मंत्र विशेष रूप से जपें?
“ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” 108 बार जपना सर्वोत्तम है।

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