गणेश चतुर्थी 2025: देशभर में बप्पा का भव्य स्वागत, राज्यों की अलग-अलग परंपराएं और उत्साह

महाराष्ट्र से गोवा तक और दिल्ली से ओडिशा तक बप्पा के जयकारे गूंजे, रिपोर्ट्स ने दिखाई भव्यता और बदलाव के प्रमाण

गणेश चतुर्थी 2025 का पर्व इस वर्ष देशभर में श्रद्धा, उल्लास और भव्यता के साथ मनाया जा रहा है। “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारे मंदिरों, पंडालों, गलियों और घरों में गूंज रहे हैं। हर राज्य अपनी अनूठी परंपराओं और सांस्कृतिक रंगों के साथ बप्पा का स्वागत कर रहा है। नवीनतम रिपोर्ट्स और स्थानीय प्रशासन की आधिकारिक सूचनाओं के अनुसार, इस बार त्यौहार में पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल प्रसारण और सांस्कृतिक नवाचार को विशेष रूप से बढ़ावा दिया गया है।

महाराष्ट्र: सबसे भव्य उत्सव, लाखों भक्त और ऐतिहासिक पंडाल

महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का सबसे भव्य आयोजन हो रहा है। मुंबई के लालबागचा राजा और पुणे के कस्बा गणपति व दगडुशेठ हलवाई गणपति के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़े। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मुंबई पुलिस ने इस बार 3,000 से अधिक पंडालों को अनुमति दी है। ढोल-ताशा, भजन संध्या, नाट्य मंचन और सामाजिक संदेश देने वाले थीम-आधारित पंडाल आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। विसर्जन के लिए गिरगांव चौपाटी और जुहू बीच पर विशेष सुरक्षा इंतज़ाम किए गए हैं।

गोवा: घरेलू और पर्यावरण-हितैषी गणेशोत्सव

गोवा में गणेश चतुर्थी को पारिवारिक और पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। मिट्टी की मूर्तियों को घरों में स्थापित कर केले के पत्तों, फलों और फूलों से सजाया जाता है। ‘माटोली’ (फलों व सब्ज़ियों से सजा लकड़ी का फ्रेम) इस उत्सव की विशेषता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार गोवा में 85% से अधिक मूर्तियां पूर्णतः प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बनी हैं। नेवरी और पातोलेओ जैसी पारंपरिक मिठाइयां हर घर में बन रही हैं।

कर्नाटक: गौरी हब्बा के साथ जुड़ा उत्सव

कर्नाटक में गणेश चतुर्थी गौरी हब्बा के साथ मिलकर एक बड़े पारिवारिक पर्व के रूप में मनाई जाती है। बेंगलुरु और मैसूरु के मंदिरों में विशेष पूजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार राज्य में 5,000 से अधिक पंडाल पंजीकृत किए गए हैं और अधिकतर में मोदक और पायसम का विशेष भोग लगाया जा रहा है।

तमिलनाडु: विनायगर चतुर्थी और कोझुकटाई का स्वाद

तमिलनाडु में गणेश चतुर्थी को विनायगर चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। यहाँ का मुख्य प्रसाद कोझुकटाई है—गुड़ और नारियल से भरा मीठा पकवान। उत्सव सरल है, जिसमें पारिवारिक पूजा, भजन और छोटे सामुदायिक आयोजन शामिल हैं।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: ऊँची प्रतिमाएं और विशाल विसर्जन जुलूस

हैदराबाद के खैरताबाद गणेश की 60 फीट ऊँची प्रतिमा इस बार भी आकर्षण का केंद्र है। हुसैन सागर झील में होने वाले विसर्जन के लिए प्रशासन ने 50 विशेष पर्यावरण-अनुकूल टैंकों की व्यवस्था की है। विजयवाड़ा और अन्य शहरों में भी बड़े पैमाने पर आयोजन हो रहे हैं।

ओडिशा: शिक्षा से जुड़ा उत्सव

ओडिशा में गणेश चतुर्थी का सीधा संबंध शिक्षा से है। स्कूलों और कॉलेजों में मूर्तियां स्थापित कर विशेष प्रार्थनाएं की जा रही हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार राज्य सरकार ने सभी शैक्षणिक संस्थानों को प्लास्टिक-फ्री गणेशोत्सव मनाने का निर्देश दिया।

गुजरात और पश्चिम बंगाल: रचनात्मक पंडाल और सांस्कृतिक फ्यूज़न

गुजरात में रंगीन पंडाल, नृत्य और मेले इस पर्व की पहचान हैं। अहमदाबाद नगर निगम ने इस बार “बेस्ट पंडाल कॉन्टेस्ट” की शुरुआत की है, जिसमें पर्यावरण-हितैषी और सामाजिक संदेश देने वाले पंडालों को पुरस्कृत किया जाएगा।
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के साथ गणेश पूजा को भी जोड़ा गया है, जहां गणेश और लक्ष्मी की संयुक्त आराधना की जाती है।

दिल्ली और उत्तर भारत: हर वर्ष बढ़ता आकर्षण

दिल्ली, पंजाब और राजस्थान में गणेश चतुर्थी का उत्सव तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कनॉट प्लेस और द्वारका में बड़े पंडाल लगाए गए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार दिल्ली में 1,200 से अधिक छोटे-बड़े पंडाल लगे हैं और 70% में पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियां स्थापित की गईं।

नागपुर: थीम आधारित पंडालों की धूम

नागपुर में इस बार पंडालों की थीम ने खास ध्यान खींचा। कहीं मैसूर पैलेस तो कहीं महाकालेश्वर मंदिर और कुंभ मेले की झलक देने वाले पंडाल बनाए गए। कला और संस्कृति प्रेमियों की भीड़ यहां उमड़ रही है।

भजन, संगीत और डिजिटल गणेशोत्सव

गणेश चतुर्थी 2025 में पारंपरिक भजनों के साथ-साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी गणेश वंदना का जादू छाया हुआ है। यूट्यूब, स्पॉटिफाई और सोशल मीडिया पर इस वर्ष “देवा श्री गणेशा रीमिक्स”, “मंगलमूर्ति मोरया” और “मोडक वाले गणेशा” जैसे गाने ट्रेंड कर रहे हैं।

विश्वास, एकता और सांस्कृतिक समन्वय का पर्व

गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एकता और सांस्कृतिक सामंजस्य का प्रतीक है। महाराष्ट्र के भव्य पंडालों से लेकर ओडिशा के शिक्षा-केंद्रित आयोजनों तक और गोवा के घरेलू उत्सवों से लेकर दिल्ली के बढ़ते भव्य आयोजनों तक, हर जगह उद्देश्य एक ही है—बाधा हटाने वाले बप्पा का स्वागत और समाज में सकारात्मकता का संचार।

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