विदेशी निर्भरता से मुक्ति: क्रिप्टो पारदर्शिता के लिए भारत का खुद का ट्रैवल रूल जरूरी

विदेशी निर्भरता से मुक्ति: क्रिप्टो पारदर्शिता के लिए भारत का खुद का ट्रैवल रूल जरूरी

स्वदेशी समाधान भारत की डेटा संप्रभुता और कानून प्रवर्तन की गति दोनों बढ़ाएगा

नई दिल्ली: भारत का तेजी से विकसित होता क्रिप्टो बाजार अब एक ऐसे अनुपालन ढांचे की मांग कर रहा है जो न केवल अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरे, बल्कि भारतीय कानूनों और डेटा संप्रभुता के अनुरूप भी हो।

यह जरूरी क्यों है, इसका उत्तर सीधा है — पारदर्शिता अपराध को रोकती है और जांच को तेज करती है। यदि भेजने और प्राप्त करने वाले की विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध न हो, तो फिर रैनसमवेयर, आतंकवादी वित्तपोषण या सीमा पार धोखाधड़ी जैसे मामलों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। वहीं, यदि यह डेटा उपलब्ध हो, तो जांच एजेंसियां धन के प्रवाह को जल्दी से जोड़ सकती हैं, एक्सचेंज जोखिम का मूल्यांकन कर सकते हैं, और नियामक संस्थाएं उन पैटर्न्स को पहचान सकती हैं जो अन्यथा छिपे रहते हैं। हाल के मामलों ने इसकी आवश्यकता और स्पष्ट की है — कई राज्य-समर्थित समूहों ने मिक्सर, ब्रिज और कम निगरानी वाले एक्सचेंजों के जरिए अरबों डॉलर का लेन-देन किया। लेकिन जब इन ऑन-चेन निशानों को अनिवार्य पहचान डेटा से जोड़ा गया, तो विश्लेषकों ने असली संचालकों तक पहुंच बनाकर इन नेटवर्कों को नियंत्रित किया। ट्रैवल रूल इस पारदर्शिता को समय पर कार्रवाई में बदल देता है।

फिलहाल समस्या यह है कि इसके लिए कोई एक समान मानक या सॉफ्टवेयर मौजूद नहीं है। बाजार में TRISA, OpenVASP, Sygna, Veriscope, TRUST जैसी कई गैर-अंतरसंचालित (non-interoperable) प्रणालियां विकसित हो चुकी हैं। एक नेटवर्क पर मौजूद वर्चुअल एसेट सर्विस प्रोवाइडर (VASP) दूसरे नेटवर्क पर मौजूद VASP से डेटा साझा नहीं कर सकता जब तक कि वह कई सिस्टमों में शामिल न हो या ब्रिज के लिए भुगतान न करे। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर असमान स्वीकृति (“sunrise problem”) के कारण अनुपालन महंगा और जटिल बन गया है। भारत में कुछ कंपनियां अंतरराष्ट्रीय उपकरणों का उपयोग करती हैं, जबकि अन्य स्प्रेडशीट और ईमेल जैसे अस्थायी उपायों पर निर्भर हैं — जो न केवल अप्रभावी हैं, बल्कि जोखिमपूर्ण भी हैं।

इन परिस्थितियों में भारत को एक मजबूत, कुशल और स्वदेशी ट्रैवल रूल समाधान विकसित करने की आवश्यकता है। पहला, यह रणनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करेगा। अनुपालन का यह अहम ढांचा विदेशी विक्रेताओं की तकनीक, मूल्य निर्धारण या कानूनी सीमाओं पर निर्भर नहीं होना चाहिए। एक स्वायत्त व्यवस्था — चाहे वह राज्य संचालित हो, उद्योग-प्रबंधित या सार्वजनिक-निजी साझेदारी के रूप में — भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर मॉडल के अनुरूप होगी। दूसरा, यह डेटा संप्रभुता को मजबूत करेगा। पहचान-संवेदनशील वित्तीय डेटा का आदान-प्रदान देश के भीतर, भारतीय कानूनों के तहत संचालित ढांचे के जरिए होना चाहिए ताकि डेटा पर विदेशी नियंत्रण न हो और यह गोपनीयता मानकों के अनुरूप रहे। तीसरा, यह मानकीकृत अनुपालन सुनिश्चित करेगा। एक राष्ट्रीय स्तर की प्रणाली एक समान प्रारूप, सेवा स्तर और प्रमाणीकरण मानक तय कर सकती है ताकि भारत में पंजीकृत सभी VASP एक-दूसरे से सहज रूप से डेटा साझा कर सकें। इससे छोटे व्यवसायों के लिए लागत कम होगी और बड़े खिलाड़ियों के लिए गति व भरोसेमंदता बढ़ेगी।

कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इससे सबसे अधिक लाभ मिलेगा। घरेलू प्रणाली को इस तरह डिजाइन किया जा सकता है कि उसे जांच के लिए जरूरी प्रेषक–प्राप्तकर्ता डेटा, डिलीवरी रसीदें और वैध क्वेरी मैकेनिज़्म मिले, जिससे कार्रवाई तेज और पारदर्शी हो। जब संदिग्ध गतिविधि रिपोर्ट्स में कई एक्सचेंजों के बीच असामान्य ट्रांसफर दिखते हैं, तो एक समान राष्ट्रीय ढांचा एजेंसियों को तुरंत प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाता है — जैसे संपत्ति फ्रीज़ करना, जब्ती या लक्षित जांच — क्योंकि उन्हें अब अलग-अलग फॉर्मेट या अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

अंतत, डिज़ाइन ही प्रभाव निर्धारित करता है। भारत को एक ऐसा ढांचा विकसित करना चाहिए जो किनारों पर तकनीकी रूप से लचीला लेकिन कोर में मजबूत हो — जिसमें PAN जैसे भारतीय पहचान मानक, मजबूत एन्क्रिप्शन, और असंगत सिस्टमों के लिए स्पष्ट वैकल्पिक प्रोटोकॉल हों। यदि इसे उचित लाइसेंसिंग, समान KYC/AML मानकों और बहु-स्तरीय प्रतिबंध जांच के साथ जोड़ा जाए, तो भारत का स्वायत्त ट्रैवल रूल इंफ्रास्ट्रक्चर न केवल उपभोक्ताओं की वित्तीय सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि देश के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में भी अहम भूमिका निभाएगा।

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