Anurag Kashyap के 53 साल: हिंदी सिनेमा के बाग़ी और बेबाक फिल्ममेकर की कहानी
Anurag Kashyap: सिनेमा का बागी, जिसने बनाई अपनी अलग राह

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाने वाले Anurag Kashyap आज 53 वर्ष के हो गए हैं। गोरखपुर से निकलकर संघर्षों के रास्ते मुंबई पहुंचने वाले Anurag Kashyap ने निर्देशन, लेखन और अभिनय—हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है। वे ऐसे निर्देशक माने जाते हैं, जिन्होंने कभी भी अपने विचारों और कला से समझौता नहीं किया।
थिएटर से शुरुआत और फिल्मों का ख्वाब
दिल्ली के हंसराज कॉलेज के छात्र रहे Anurag Kashyap कॉलेज के दिनों में नुक्कड़ नाटकों से जुड़े। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में लगातार फिल्में देखने के बाद उनकी रुचि फिल्ममेकिंग की ओर गहरी हो गई। ‘बाइसिकल थीव्स’ जैसी क्लासिक फिल्म ने उनके मन पर गहरा असर छोड़ा।
संघर्षों के साथ मुंबई की राह
1993 में महज़ 5,000 रुपये लेकर वे मुंबई पहुंचे। शुरुआती दिनों में बेरोजगारी, फुटपाथ पर रातें और छोटे-मोटे काम उनकी दिनचर्या का हिस्सा रहे। पृथ्वी थिएटर में उन्हें मंच मिला, लेकिन वह भी अधूरा रह गया। इसी दौरान मनोज बाजपेयी, तिग्मांशु धूलिया और अनुभव सिन्हा जैसे कलाकार उनके करीबी बने और आगे चलकर उन्होंने कश्यप को मजबूती दी।
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लेखन से मिली पहली पहचान
Anurag Kashyap ने श्रीराम राघवन और हंसल मेहता की फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखीं, हालांकि वे प्रोजेक्ट पूरे नहीं हो सके। 1998 में उनकी किस्मत ने करवट ली, जब मनोज बाजपेयी की सिफारिश पर उन्हें राम गोपाल वर्मा की सत्या में कहानी और डायलॉग लिखने का मौका मिला। यह फिल्म सुपरहिट रही और Anurag Kashyap का नाम इंडस्ट्री में गूंजने लगा। इसके बाद उन्होंने कौन, शूल, युवा और हनीमून ट्रैवल्स प्रा. लि. जैसी फिल्मों के लिए भी लेखन किया।
निर्देशन और सेंसर से जंग
निर्देशक के तौर पर उनकी पहली फिल्म पांच थी, लेकिन हिंसा और भाषा को लेकर सेंसर बोर्ड ने इसे रोक दिया। भले ही बाद में इसे मंजूरी मिली, पर यह थिएटर तक कभी नहीं पहुंच सकी। इसके बाद आई ब्लैक फ्राइडे (1993 मुंबई बम धमाकों पर आधारित) कानूनी लड़ाई के कारण वर्षों तक अटकी रही और 2007 में रिलीज़ हुई।
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से मिला नया मुकाम
2012 में रिलीज़ हुई गैंग्स ऑफ वासेपुर ने Anurag Kashyap के करियर की दिशा ही बदल दी। यह फिल्म आज भी कल्ट स्टेटस रखती है और कई नए चेहरों को पहचान दिलाई। इसके बाद अग्ली, रमन राघव 2.0, मुक्काबाज़, मनमर्जियां जैसी फिल्में और नेटफ्लिक्स की चर्चित सीरीज़ सेक्रेड गेम्स उनके खाते में जुड़ीं।
अभिनय में भी साबित किया दम
निर्देशक और लेखक के अलावा Anurag Kashyap ने अभिनय में भी अपनी पहचान बनाई। अकीरा, शागिर्द, AK vs AK जैसी फिल्मों में उन्हें सराहा गया। हाल ही में विजय सेतुपति की महाराजा में विलेन के रूप में उनकी परफॉर्मेंस की खूब तारीफ हुई।
आने वाली फिल्में
Anurag Kashyap की अगली फिल्म निशानची 19 सितंबर को रिलीज़ होगी, जिसका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है। वहीं उनकी फिल्म बंदर को टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शानदार प्रतिक्रिया मिली है। इसमें बॉबी देओल और सान्या मल्होत्रा मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
निष्कर्ष
संघर्षों से शुरू हुआ यह सफर आज उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे बेबाक और प्रयोगधर्मी निर्देशक बनाता है। Anurag Kashyap की कहानी इस बात का सबूत है कि असली कलाकार वही है, जो हर हाल में अपनी सोच और कला से सच्चाई बनाए रखे।
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