भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण (UCT) एक दशक में 23 गुना बढ़कर 2.8 लाख करोड़ रुपए पार – प्रोजेक्ट डीप रिपोर्ट का खुलासा

नई दिल्ली, 11 अगस्त 2025 – भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण (Unconditional Cash Transfer – UCT) योजनाओं में पिछले दस वर्षों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की गई है। प्रोजेक्ट डीप की नई राष्ट्रीय रिपोर्ट ‘भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण: अब तक की यात्रा और भविष्य की रूपरेखा’ के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में इन योजनाओं का कुल आवंटन 2,80,780 करोड़ रुपए तक पहुंच गया, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 प्रतिशत और सामाजिक क्षेत्र के कुल सरकारी खर्च का 11 प्रतिशत है। यह आंकड़ा मनरेगा और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम जैसे बड़े कल्याणकारी कार्यक्रमों के आवंटन को भी पीछे छोड़ देता है, जो भारत के सामाजिक कल्याण ढांचे में एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है।

रिपोर्ट बताती है कि 2015-16 में केवल नौ योजनाओं के तहत मासिक नकद हस्तांतरण दिया जाता था, जबकि 2024-25 में यह संख्या बढ़कर 32 तक पहुंच गई है। आज मासिक नकद हस्तांतरण, कुल UCT व्यय का 71 प्रतिशत हिस्सा है और मौजूदा बजटीय आवंटनों का 54 प्रतिशत से अधिक हिस्सा निम्न-आय वर्ग की महिलाओं को जा रहा है, जो लिंग-संवेदनशील कल्याण के प्रति एक स्पष्ट संकेत है। यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि बिना शर्त नकद हस्तांतरण अब केवल आपातकालीन राहत का साधन नहीं रहा, बल्कि वित्तीय स्थिरता और नागरिक सशक्तिकरण का स्थायी औजार बन चुका है।

प्रोजेक्ट डीप के सह-संस्थापक मुज़मिल बेग़ का कहना है कि यह समय योजनाओं के समेकन और अप्रभावी कार्यक्रमों को समाप्त करने का है, ताकि सतत नकद हस्तांतरण के माध्यम से न्यायसंगत और समावेशी विकास का नया युग शुरू किया जा सके। वहीं सह-संस्थापक पंखुरी शाह मानती हैं कि नकद हस्तांतरण अब वित्तीय सहायता से आगे बढ़कर भारत के वेलफेयर अप्रोच में संरचनात्मक बदलाव का प्रतीक है, जिसकी पूरी क्षमता पाने के लिए व्यवस्थित नीति और नवाचार बेहद ज़रूरी है।

रिपोर्ट यह भी उजागर करती है कि कई कमजोर समूह अब भी इस दायरे से बाहर हैं, जिनमें बेघर लोग, ट्रांसजेंडर समुदाय, गिग वर्कर्स और वे लोग शामिल हैं जो डेटा की अदृश्यता और अंतर्संबंधी कमजोरियों का सामना कर रहे हैं। राज्यों के स्तर पर एकीकृत डेटा बेस और लाभ पोर्टेबिलिटी की आवश्यकता पर जोर देते हुए रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा योजनाओं के तहत वार्षिक नकद सहायता 2,400 रुपए से 2 लाख रुपए तक अलग-अलग है, जबकि कुछ योजनाएं मासिक प्रति व्यक्ति खपत का केवल 2.7 प्रतिशत ही कवर करती हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) में दी जाने वाली मासिक पेंशन मनरेगा की दैनिक मजदूरी से भी कम है, जो प्रमुख योजनाओं की पर्याप्तता पर सवाल खड़े करता है।

प्रोजेक्ट डीप इस रिपोर्ट में पारंपरिक ‘सुरक्षा-जाल’ दृष्टिकोण से आगे बढ़कर ‘ट्रैम्पोलिन प्रभाव’ की वकालत करता है, जो कमजोर समुदायों को केवल सहारा देने के बजाय उन्हें आर्थिक भागीदारी और स्वावलंबन की ओर ले जाने में मदद करता है। रिपोर्ट का स्पष्ट संदेश है कि बिना शर्त नकद हस्तांतरण को सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों जैसे सार्वजनिक संसाधनों के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि उनके पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए। केवल तब, जब आधारभूत सेवाएं मजबूत होंगी, नकद हस्तांतरण व्यक्तिगत एजेंसी को बढ़ावा देने की अपनी इच्छित भूमिका निभा सकेगा, बजाय इसके कि वह बिखरी हुई प्रणालियों को बचाने के लिए अस्थायी सहारे का काम करे।

रिपोर्ट के निष्कर्ष इस बात पर जोर देते हैं कि भारत में नकद हस्तांतरण आधारित कल्याण को मजबूत और भविष्य-उन्मुख बनाने के लिए सरकार, नागरिक समाज और परोपकारी संस्थानों के बीच सहयोगात्मक कार्रवाई आवश्यक है। दुनिया भर से मिले प्रमाण बताते हैं कि नागरिकों को सीधे नकद सहायता देना प्रभावी है, क्योंकि इससे उन्हें अपने जीवन को आकार देने के लिए विकल्प और क्रय शक्ति मिलती है। यह न केवल जीवन की बुनियादी गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक है, बल्कि आजीविका बढ़ाने के लिए निवेश सहायता के रूप में भी कारगर है। इस प्रकार, भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण न केवल एक वित्तीय सहायता तंत्र है, बल्कि एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में उभर रहा है, जो देश को नागरिक-केंद्रित, समावेशी और स्थायी विकास की ओर ले जा सकता है।

More From Author

श्रीराम भारतीय कला केंद्र पेश करेगा ‘कृष्ण’ का 49वां संस्करण – भगवान श्रीकृष्ण की जीवनगाथा पर आधारित भव्य नृत्य नाटक

चिया सीड्स सभी के लिए नहीं! जानें किन लोगों को करना चाहिए परहेज़ और वजह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *