कोलकाता के जस्मीत अरोड़ा देशभर से आम की गुठलियां इकट्ठा कर उन्हें पौधों में बदलते हैं और किसानों को मुफ्त में देकर टिकाऊ खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।
कोलकाता के 51 वर्षीय जस्मीत सिंह अरोड़ा, जिन्हें लोग ‘गुठली मैन’ के नाम से जानते हैं, आम की फेंकी जाने वाली गुठलियों को इकट्ठा कर एक हरित क्रांति की ओर अग्रसर हैं। कभी आईटी और फार्मा सेक्टर में काम कर चुके अरोड़ा अब पर्यावरण और किसानों की भलाई के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हो चुके हैं।
आम की गुठलियों से तैयार होते हैं पौधे, किसानों को मिलता है मुफ़्त लाभ
अरोड़ा देशभर से आम की गुठलियां जुटाकर उन्हें अंकुरित करते हैं, स्थानीय किस्मों जैसे लंगड़ा और गुलाब खास से ग्राफ्टिंग कर पौध तैयार करते हैं, और फिर उन्हें किसानों को नि:शुल्क देते हैं। उनका उद्देश्य किसानों को धान जैसी पानीखपत वाली फसलों से हटाकर टिकाऊ और मुनाफेदार आम की खेती की ओर ले जाना है।

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वायरल वीडियो से मिली पहचान, एक साल में 11 लाख गुठलियां
शुरुआत छोटे स्तर पर हुई, लेकिन एक वीडियो वायरल होते ही पूरे देश से लोगों ने उन्हें गुठलियां भेजनी शुरू कर दीं। केवल एक साल में उन्हें 11 लाख से अधिक गुठलियां प्राप्त हुईं, जिन्हें वे डायमंड हार्बर और बर्दवान के पास की जमीन पर सुखाकर और साफ कर बोते हैं। हालांकि, इन गुठलियों में से केवल 10-15 प्रतिशत ही पौधे बन पाते हैं, जिससे किसानों का संकोच स्वाभाविक है।
किसानों का विश्वास जीतना था चुनौतीपूर्ण, अब समुदाय भी जुड़ा
कई योजनाओं से ठगे जा चुके किसानों का भरोसा जीतना आसान नहीं था। अरोड़ा ने आम के साथ तेजी से फल देने वाले अन्य पौधे भी वितरित किए ताकि किसान लाभ जल्दी महसूस कर सकें। धीरे-धीरे किसानों और स्वयंसेवकों के समर्थन से यह अभियान फैलता गया।
डॉक्टर से पर्यावरण योद्धा तक का सफर
मूल रूप से एक डॉक्टर, अरोड़ा ने आईटी और फार्मा कंपनियों में काम करने के बाद सामाजिक सेवा की राह पकड़ी। सुंदरबन और पुरुलिया जैसे पिछड़े इलाकों में किसानों की बदहाली देखकर वे प्रेरित हुए। अब वे जैविक खेती के प्रबल समर्थक हैं और रासायनिक खेती को पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक मानते हैं।
आम का मौसम आया, अरोड़ा की अपील – “गुठलियां न फेंके, भेजें हमारे पास”
अरोड़ा की अपील है कि लोग आम खाने के बाद गुठलियां न फेंकें, बल्कि उन्हें धोकर और सुखाकर उनके पास भेजें। उनका यह अभियान अब स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न संस्थानों तक फैल चुका है।
छोटी पहल, बड़ा बदलाव
जस्मीत अरोड़ा का काम सिर्फ पौधे लगाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़े बदलाव की दिशा में उठाया गया कदम है। आम की गुठलियों को बचाकर हम पर्यावरण और किसानों दोनों का भविष्य संवार सकते हैं।
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