पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि पर लगाई रोक, जानिए क्या है यह समझौता और क्यों है यह अहम
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) वर्ष 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी थी। करीब नौ वर्षों तक चली बातचीत के बाद इस समझौते पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इसका उद्देश्य सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों का शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण बंटवारा सुनिश्चित करना था।
इस नदी प्रणाली में छह नदियाँ शामिल हैं: सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज। संधि के अनुसार, पश्चिम की तीन नदियाँ — सिंधु, झेलम और चिनाब — पाकिस्तान को दी गईं, जबकि पूर्व की तीन नदियाँ — रावी, ब्यास और सतलज — भारत के उपयोग के लिए सुरक्षित रखी गईं। भारत को इन नदियों से कृषि, घरेलू और सीमित औद्योगिक उपयोग की अनुमति मिली, लेकिन कुल जल का केवल 20% ही भारत को उपयोग में लेने का अधिकार मिला, जबकि 80% जल पाकिस्तान को गया।
भारत ने क्यों लिया यह अहम फैसला?
23 अप्रैल की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी मौजूद थे। बैठक के बाद विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में आधिकारिक जानकारी दी कि भारत फिलहाल सिंधु जल संधि पर रोक लगा रहा है।

यह फैसला जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद लिया गया है। सरकार का यह निर्णय न केवल पाकिस्तान को एक सख्त संदेश देने वाला है, बल्कि यह भारत की बदलती रणनीतिक नीति को भी दर्शाता है।
क्या होगा पाकिस्तान पर असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि सिंधु जल संधि पर रोक लगाने से पाकिस्तान पर सीधा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि उसकी जल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा इस पर निर्भर करता है। अगर भारत संधि से पीछे हटता है या उसमें बदलाव करता है, तो पाकिस्तान की जल सुरक्षा और कृषि व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है।
अब आगे क्या?
सिंधु जल संधि अब तक भारत-पाक संबंधों में स्थिरता बनाए रखने का एक मजबूत आधार रही है। ऐसे में भारत का यह कदम दोनों देशों के रिश्तों में एक नया मोड़ ला सकता है। राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में इस पर गहन चर्चा शुरू हो गई है कि क्या यह कदम एक स्थायी नीति बदलाव की ओर संकेत है या तत्कालिक हालात की प्रतिक्रिया।
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