स्पष्ट नियमों और घरेलू समाधान के अभाव में उपयोगकर्ता हो रहे हैं साइबर हमलों और विदेशी निर्भरता के शिकार, सरकार से ठोस नीतियों की दरकार
नई दिल्ली, भारत में क्रिप्टो संपत्तियों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच उन्हें सुरक्षित रखने की चुनौतियां भी तेजी से सामने आ रही हैं। डिजिटल एसेट्स जैसे बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी को सुरक्षित रखने के लिए क्रिप्टो वॉलेट्स और कस्टडी समाधान आवश्यक हो गए हैं, लेकिन भारत में अब तक इस दिशा में पर्याप्त ढांचा नहीं बन पाया है।
क्रिप्टो वॉलेट्स डिजिटल उपकरण होते हैं, जो क्रिप्टो संपत्तियों के लेन-देन और सुरक्षा में मदद करते हैं। ये वॉलेट्स क्रिप्टोग्राफिक ‘की’ पर आधारित होते हैं – एक प्राइवेट की (पासवर्ड के समान) और एक पब्लिक की (बैंक अकाउंट नंबर की तरह)। इन दोनों की सुरक्षा अत्यंत जरूरी है, क्योंकि इनके ज़रिए ही संपत्तियों तक पहुंच संभव होती है।
वॉलेट्स को उनकी प्रकृति के आधार पर चार भागों में बांटा जा सकता है:
- हॉट वॉलेट्स: इंटरनेट से जुड़े होते हैं, लेकिन साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- कोल्ड वॉलेट्स: ऑफलाइन रहते हैं और अधिक सुरक्षित माने जाते हैं।
- कस्टोडियल वॉलेट्स: जहां किसी थर्ड पार्टी (जैसे एक्सचेंज) के पास कंट्रोल होता है।
- नॉन-कस्टोडियल वॉलेट्स: जहां पूरी जिम्मेदारी उपयोगकर्ता की होती है।

हालांकि भारत में क्रिप्टो अपनाने की गति तेज है, लेकिन खुद के विकसित किए गए वॉलेट्स और कस्टडी सॉल्यूशंस की संख्या न के बराबर है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस सेक्टर के लिए कोई स्पष्ट सरकारी दिशा-निर्देश मौजूद नहीं हैं, जिससे उपयोगकर्ता और सेवा प्रदाताओं के अधिकार और जिम्मेदारियां स्पष्ट नहीं हो पातीं।
नियामकीय स्पष्टता का अभाव:
बिना किसी रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के काम करने वाली कस्टडी सेवाएं पारंपरिक वित्तीय संस्थाओं के बिना लाइसेंस के संचालन के बराबर हैं, जो निवेशकों की सुरक्षा के लिहाज से बड़ा खतरा है।
विकेंद्रीकरण और आत्म-नियंत्रण की जरूरत:
केंद्रीकृत कस्टडी प्लेटफॉर्म्स साइबर हमलों के लिए आसान लक्ष्य होते हैं। इसलिए, हार्डवेयर वॉलेट्स, कोल्ड स्टोरेज, मल्टी-सिग वॉलेट्स, मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन और एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन जैसी तकनीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
देश के बाहर पूंजी का बहाव:
घरेलू कस्टडी सॉल्यूशंस के अभाव में भारतीय उपयोगकर्ता विदेशी सेवाओं पर निर्भर हो रहे हैं, जिससे न केवल पूंजी देश से बाहर जा रही है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित हो रही है।
सरकारी भूमिका और संभावनाएं:
सरकार को चाहिए कि वह क्रिप्टो कस्टडी के लिए पारदर्शी नियम बनाए और घरेलू स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए टैक्स छूट, रेगुलेटरी सैंडबॉक्स और प्रमाणन जैसी सुविधाएं प्रदान करे। इससे न केवल स्थानीय रोजगार और टेक्नोलॉजी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उपयोगकर्ताओं की संपत्तियां भी भारतीय कानून के दायरे में सुरक्षित रहेंगी।
कानून प्रवर्तन के लिए भी जरूरी:
यदि क्रिप्टो एसेट्स विदेशी प्लेटफॉर्म्स पर रखे जाते हैं, तो मनी लॉन्ड्रिंग, साइबर क्राइम और आतंक वित्त जैसे मामलों की जांच में अड़चनें आती हैं। घरेलू कस्टडी ढांचे से LEA (कानून प्रवर्तन एजेंसियों) को तेजी से डेटा एक्सेस और कार्रवाई में मदद मिलेगी।
भारत में सुरक्षित और पारदर्शी क्रिप्टो इकोसिस्टम के निर्माण के लिए एक स्पष्ट नियामकीय दृष्टिकोण और मजबूत घरेलू कस्टडी इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है। यह कदम न सिर्फ निवेशकों की सुरक्षा बल्कि राष्ट्रीय हित और आर्थिक मजबूती के लिए भी अनिवार्य है।
ये भी पढ़ें :- वर्ल्ड लिवर डे 2025: क्या आपने लिया है सेहत का संकल्प? सरकार दे रही है डिजिटल सर्टिफिकेट, जानें कैसे करें लिवर की देखभाल