एक विचारशील समाज सुधारक जिन्होंने भारत की सामाजिक चेतना को नई दिशा दी
महात्मा ज्योतिबा फुले, जिनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था, भारत के एक प्रख्यात समाज सुधारक, विचारक, लेखक, और क्रांतिकारी थे। उन्होंने उन्नीसवीं सदी में एक ऐसे समाज में जन्म लिया था, जहाँ जाति, धर्म और लिंग के नाम पर भेदभाव चरम पर था। उन्होंने ना सिर्फ इस व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाया, बल्कि उसे तोड़ने के लिए ठोस कदम भी उठाए।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 11 अप्रैल, 1827
- स्थान: सतारा जिला, महाराष्ट्र
- जाति: माली (एक पिछड़ी जाति, जिन्हें उस समय “शूद्र” कहा जाता था)
ज्योतिबा का परिवार फूलों की खेती करता था, इसी कारण उन्हें ‘फुले’ उपनाम मिला। प्रारंभ में उन्हें उच्च शिक्षा से वंचित रखा गया, लेकिन बाद में कुछ ईसाई मिशनरियों की मदद से उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की।
महात्मा फुले का शिक्षा क्षेत्र में योगदान
भारत की पहली बालिका विद्यालय की स्थापना (1848)
महात्मा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने पुणे में भारत का पहला लड़कियों का स्कूल शुरू किया। यह एक क्रांतिकारी कदम था, क्योंकि उस समय लड़कियों को शिक्षा देना पाप समझा जाता था।
सावित्रीबाई को बनाया पहला महिला शिक्षक
महात्मा फुले ने अपनी पत्नी को पढ़ाया और फिर उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षक बनाया। सावित्रीबाई खुद भी महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महान व्यक्तित्व बनीं।
“शिक्षा ही मुक्ति का मार्ग है” – महात्मा फुले
महिलाओं और विधवाओं के लिए कार्य
महात्मा फुले ने न सिर्फ बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया, बल्कि *विधवाओं के पुनर्विवाह, अविवाहित माताओं की देखभाल, और स्त्री-पुरुष समानता के पक्ष में भी आवाज़ उठाई।
सती प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ अभियान
उन्होंने समाज में फैली सती प्रथा और बाल विवाह जैसी अमानवीय प्रथाओं का विरोध किया और इनके विरुद्ध जन-जागृति फैलाने का कार्य किया।
जातिवाद और ब्राह्मणवाद के विरुद्ध संघर्ष
“गुलामगिरी” (1873)
महात्मा फुले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गुलामगिरी में ब्राह्मणवाद और जातिगत अत्याचारों की कड़ी आलोचना की। यह पुस्तक अमेरिकी दासप्रथा के खिलाफ लिखे गए साहित्य से प्रेरित थी और इसका उद्देश्य भारतीय दलितों के शोषण को उजागर करना था।
सत्यशोधक समाज की स्थापना (1873)
फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था—
- ब्राह्मणों द्वारा फैलाए गए झूठे धार्मिक विश्वासों को उजागर करना
- नीची जातियों को आत्मसम्मान और शिक्षा प्रदान करना
- दलितों और शूद्रों को सामाजिक न्याय दिलाना
कृषि और किसान हितों के लिए योगदान
ज्योतिबा फुले ने किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने देखा कि कैसे ब्रिटिश सरकार और जमींदार गरीब किसानों को कर्ज में फंसा कर उनका शोषण करते हैं। उन्होंने पानी के स्रोतों, सिंचाई, और खेती की उचित तकनीकों पर भी जोर दिया।
महात्मा फुले का सपना – एक समतामूलक समाज
महात्मा फुले का सपना था:
- जहाँ कोई जाति भेद न हो
- जहाँ स्त्री और पुरुष बराबर हों
- जहाँ हर बच्चा, चाहे किसी भी जाति या धर्म का हो, शिक्षा प्राप्त कर सके
- जहाँ सत्य, विवेक और करुणा से समाज का निर्माण हो
सम्मान और विरासत
- उन्हें सम्मानपूर्वक ‘महात्मा’ की उपाधि उनके समकालीन विचारकों और समाज ने दी।
- महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनकी जयंती 11 अप्रैल को ‘महात्मा फुले जयंती’ के रूप में मनाई जाती है।
- कई विश्वविद्यालय, संस्थान, और योजनाएं आज भी उनके नाम पर चल रही हैं।
निधन
- तारीख: 28 नवंबर, 1890
- स्थान: पुणे, महाराष्ट्र
महात्मा फुले का जीवन इस बात का प्रतीक है कि एक व्यक्ति, अगर दृढ़ निश्चय और सच्चे उद्देश्य के साथ खड़ा हो जाए, तो समाज की सबसे गहरी जड़ों में पैठे अन्याय को भी उखाड़ सकता है।
महात्मा ज्योतिबा फुले केवल एक समाज सुधारक नहीं, भारत में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। उनका जीवन आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है – कि शिक्षा, समानता और न्याय के लिए कोई भी लड़ाई असंभव नहीं है, अगर संकल्प मजबूत हो।
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