ऊर्जा संपन्नता के बावजूद तकनीकी अवसरों से दूर क्यों है देश?
क्रिप्टो माइनिंग डिजिटल मुद्रा प्रणाली का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिससे नए टोकन बनाए जाते हैं और ब्लॉकचेन पर लेनदेन को सत्यापित किया जाता है। अमेरिका, कनाडा, और कजाकिस्तान जैसे देशों ने अपने ऊर्जा संसाधनों और अनुकूल नीतियों का लाभ उठाकर इस क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। वहीं, छोटे देश भूटान ने भी जलविद्युत का उपयोग कर क्रिप्टो माइनिंग को एक मजबूत आर्थिक गतिविधि के रूप में अपनाया है।
इसके विपरीत, भारत में तकनीकी क्षमता और विशाल आईटी कार्यबल होने के बावजूद, क्रिप्टो माइनिंग का विकास बाधित हो रहा है। नीति संबंधी अनिश्चितताओं, भारी कराधान और बुनियादी ढांचे की कमी के चलते यह उद्योग भारत में अपनी जड़ें नहीं जमा पा रहा है।
क्या भारत क्रिप्टो माइनिंग का अवसर गंवा रहा है?
भारत के पास नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की विशाल क्षमता है, जिसे क्रिप्टो माइनिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में पर्याप्त सौर और पवन ऊर्जा उपलब्ध है, जिससे यह क्षेत्र विकसित हो सकता है। दुनिया के कई देश पहले ही इस तकनीक का उपयोग करके आर्थिक विकास और ऊर्जा स्थिरता की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं।
भारत के लिए क्रिप्टो माइनिंग सिर्फ डिजिटल संपत्ति कमाने का साधन नहीं, बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा और रोजगार सृजन का बड़ा जरिया हो सकता है। अब सवाल यह है कि क्या भारत इस उभरते अवसर का लाभ उठाने के लिए निर्णायक कदम उठाएगा या फिर वैश्विक तकनीकी दौड़ में पिछड़ जाएगा?