बढ़ते क्रिप्टो बाजार पर कर नियमों की सख्ती
क्रिप्टोकरेंसी 21वीं सदी के सबसे बड़े वित्तीय बदलावों में से एक है, जिसे भारत समेत पूरी दुनिया तेजी से अपना रही है। 2024 तक, भारत उन देशों में शामिल हो गया है जहां क्रिप्टो ट्रेडिंग और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। लाखों निवेशक और स्टार्टअप इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, लेकिन सख्त टैक्स नियमों और स्पष्ट नियामक ढांचे की कमी ने क्रिप्टो मार्केट को कई चुनौतियों के सामने ला खड़ा किया है।
सरकार ने 2022 में क्रिप्टो पर टैक्स लगाने की घोषणा कर स्पष्टता तो दी, लेकिन बनाए गए नियम इतने कड़े हैं कि उन्होंने इस क्षेत्र के विकास को बाधित कर दिया है।
भारत में क्रिप्टो टैक्स के मौजूदा नियम
- 30% टैक्स – क्रिप्टो से होने वाले मुनाफे पर 30% सीधा कर लगाया जाता है, जिसमें कोई छूट या कटौती की अनुमति नहीं है।
- 1% टीडीएस – 50,000 रुपये (कुछ मामलों में 10,000 रुपये) से अधिक के लेन-देन पर 1% टीडीएस काटा जाता है, जिससे घरेलू क्रिप्टो एक्सचेंजों का व्यापार प्रभावित हुआ है।
- नुकसान की भरपाई नहीं – शेयर बाजार में निवेशकों को हुए नुकसान की भरपाई की सुविधा मिलती है, लेकिन क्रिप्टो में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
- क्रिप्टो गिफ्ट भी टैक्स के दायरे में – यदि किसी को क्रिप्टो उपहार में मिलता है, तो इसे ‘अन्य स्रोतों से आय’ मानकर कर लगाया जाता है।
कर नियमों का प्रभाव
सरकार का उद्देश्य था कि क्रिप्टो टैक्स के जरिए लेन-देन पर निगरानी रखी जाए और वित्तीय स्थिरता बनी रहे, लेकिन इसके सख्त नियमों ने उद्योग के लिए कई समस्याएं खड़ी कर दी हैं।
- भारतीय एक्सचेंजों का ट्रेडिंग वॉल्यूम गिरा – 1% टीडीएस के कारण कई निवेशक विदेशी एक्सचेंजों पर शिफ्ट हो गए हैं, जिससे भारतीय एक्सचेंजों पर कारोबार घट गया है।
- विदेशी प्लेटफॉर्म की ओर रुझान – कई उपयोगकर्ता पीयर-टू-पीयर (P2P) लेन-देन या विदेशी प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं, जहां टैक्स नियम सख्त नहीं हैं।
- स्टार्टअप्स का पलायन – भारत में ब्लॉकचेन और वेब3 स्टार्टअप्स की अपार संभावनाएं थीं, लेकिन कर नियमों के कारण वे सिंगापुर, दुबई और यूके जैसे देशों में स्थानांतरित हो रहे हैं।
आगे का रास्ता
अगर भारत क्रिप्टो और वेब3 क्षेत्र में अग्रणी बनना चाहता है, तो टैक्स नीति में कुछ सुधार आवश्यक हैं।
- 1% टीडीएस घटाकर 0.1% किया जाए – यह सरकार को लेन-देन ट्रैक करने में मदद करेगा और बाजार में गतिशीलता बनी रहेगी।
- नुकसान समायोजन की अनुमति दी जाए – शेयर बाजार की तरह क्रिप्टो निवेशकों को भी घाटे की भरपाई का अवसर मिलना चाहिए।
- स्पष्ट नियामक ढांचा बनाया जाए – एक स्वतंत्र क्रिप्टो नियामक संस्था स्थापित की जाए, जो नियमों को अधिक पारदर्शी बनाए।
- लंबी और छोटी अवधि के लिए अलग टैक्स स्लैब – यदि कोई निवेशक क्रिप्टो को लंबे समय तक होल्ड करता है, तो उसे दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर (LTCG) में छूट मिलनी चाहिए।
क्या भारत क्रिप्टो को अवसर के रूप में देखेगा या समस्या के रूप में?
अगर सरकार ने जल्द ही संतुलित नीति नहीं अपनाई, तो भारतीय निवेशक और स्टार्टअप ऐसे देशों में शिफ्ट हो सकते हैं जहां टैक्स और नियमन अधिक अनुकूल हैं। भारत को तय करना होगा कि वह डिजिटल वित्त की इस क्रांति में आगे बढ़ना चाहता है या नहीं। क्रिप्टो सिर्फ एक निवेश का माध्यम नहीं, बल्कि भविष्य की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आधार है। अब समय है कि भारत इस अवसर को पहचाने और सही नीतिगत कदम उठाए।
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