Share market : शेयर बाजार की लगातार गिरावट के पीछे कई अहम वजहें छिपी हुई हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारतीय बाजारों से विदेशी फंड्स की निकासी के लिए कई प्रमुख कारक जिम्मेदार हैं। इनमें शामिल हैं
Share market : विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने जनवरी के पहले 10 दिनों में भारतीय शेयर बाजार से 22,194 करोड़ रुपये की निकासी की है। कमजोर तिमाही नतीजों की संभावना, डॉलर की मजबूती और डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में टैरिफ वॉर तेज होने की आशंका ने एफपीआई को बिकवाली के लिए प्रेरित किया है। इस वजह से भारतीय शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखी जा रही है। दिसंबर 2023 में जहां एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार में 15,446 करोड़ रुपये का निवेश किया था, वहीं इस महीने भारी निकासी ने बाजार को झटका दिया है।
एफपीआई की बिकवाली के कारण
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक हिमांशु श्रीवास्तव ने बताया कि कई प्रमुख कारण एफपीआई की निकासी के लिए जिम्मेदार हैं:
- कमजोर तिमाही नतीजों की संभावना: कंपनियों के नतीजे उम्मीद से कम रहने की आशंका निवेशकों को बेचैन कर रही है।
- टैरिफ वॉर की संभावना: ट्रंप प्रशासन के दौरान टैरिफ वॉर के तेज होने की अटकलें बाजार को प्रभावित कर रही हैं।
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सुस्ती: GDP वृद्धि दर के धीमी रहने से निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है।
- महंगाई दर में बढ़ोतरी: ऊंची महंगाई निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
- ब्याज दरों में कटौती को लेकर असमंजस: भारत में ब्याज दरों में कटौती को लेकर स्पष्टता न होने से बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है।
इसके साथ ही भारतीय शेयर बाजार (Share market) के ऊंचे वैल्यूएशन ने भी विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित किया है।
डॉलर इंडेक्स और बॉन्ड यील्ड का प्रभाव
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने जनवरी 2024 में 10 जनवरी तक लगभग हर कारोबारी दिन शुद्ध बिकवाली की। जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी.के. विजयकुमार ने कहा कि डॉलर इंडेक्स के 109 से ऊपर जाने और 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड यील्ड के 4.6% से अधिक पहुंचने की वजह से उभरते बाजारों में निवेश घटा है।
पिछली साल की तुलना
2024 में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार(Share market) में केवल 427 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया, जो 2023 में उनके द्वारा किए गए 1.71 लाख करोड़ रुपये के निवेश की तुलना में बहुत कम है। इससे साफ है कि वैश्विक और घरेलू आर्थिक दबावों ने विदेशी निवेशकों के रुख को पूरी तरह से बदल दिया है।