
नई दिल्ली, (न्यूज ऑफ द डे)
भारत में वित्तीय तकनीक और डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से विकास कर रही है, लेकिन इस क्रांति के साथ जोखिम और चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA), जिसे आमतौर पर क्रिप्टोकरेंसी कहा जाता है, ने वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय क्षेत्र को पुनर्परिभाषित किया है। हालांकि, VDA का संचालन, नियमन और इसके व्यापक प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए एक समर्पित और समग्र नियामक ढांचे का अभाव भारत के सामने एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
क्या है सरकार की मौजूदा स्थिति?
16 दिसंबर, 2024 को लोकसभा में वित्त मंत्रालय द्वारा पेश उत्तर ने सरकार की रणनीति और दृष्टिकोण को स्पष्ट किया। यह समझा गया कि VDA एक सीमाहीन प्रणाली है, जिसे प्रभावी रूप से नियामित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। भारत ने 7 मार्च, 2023 को वर्चुअल डिजिटल एसेट्स को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत लाकर पहला कदम उठाया। इसके साथ ही VDA से होने वाली आय पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर लगाया जा रहा है। लेकिन, यह कदम सीमित प्रभावी हैं और व्यापक नियामक ढांचे का विकल्प नहीं हो सकते।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और G20 की भूमिका
भारत ने अपने G20 अध्यक्षता के दौरान, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) के साथ मिलकर एक समन्वित नीति और नियामक ढांचे के लिए ‘क्रिप्टो एसेट्स पर G20 रोडमैप’ को अपनाया। यह रोडमैप नवाचार के साथ-साथ जोखिमों के मूल्यांकन को केंद्र में रखता है। लेकिन, इस प्रक्रिया में हर कदम अंतरराष्ट्रीय सहमति और देश-विशेष जोखिमों के गहन मूल्यांकन पर निर्भर करता है।
नवाचार बनाम निवेशक सुरक्षा: क्या भारत संतुलन बना पाएगा?
VDA के क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहन देना भारत के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था को डिजिटलीकरण और निवेश के नए आयाम दे सकता है। लेकिन, यह ध्यान रखना होगा कि यह नवाचार निवेशकों और आम जनता के लिए वित्तीय जोखिम न बने। क्रिप्टो बाजार की अस्थिरता, मनी लॉन्ड्रिंग, कर चोरी और धोखाधड़ी जैसी समस्याएं गहरी चिंताओं को जन्म देती हैं।
सरकार का यह दावा सही है कि “निवेशक सुरक्षा उपाय जोखिम को सीमित हद तक ही कम कर सकते हैं और इन्हें पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकते।” यह स्पष्ट करता है कि डिजिटल एसेट्स की प्रकृति और जोखिम इतने व्यापक और बहुआयामी हैं कि केवल घरेलू नीति पर्याप्त नहीं हो सकती।
क्या चाहिए एक प्रभावी नियामक ढांचे के लिए?
अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण:
वर्चुअल डिजिटल एसेट्स की प्रकृति सीमाहीन है। ऐसे में भारत को G20 जैसे प्लेटफॉर्म पर सक्रिय भागीदारी जारी रखनी होगी ताकि वैश्विक मानकों को अपनाया जा सके।
संवाद और सहमति:
सरकार ने विभिन्न हितधारकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से परामर्श लिया है, लेकिन इसे और अधिक पारदर्शी और व्यापक बनाना होगा। डिस्कशन पेपर जैसे दस्तावेज़ को जल्दी जारी करना चाहिए ताकि व्यापक जनता और विशेषज्ञ इसमें भाग ले सकें।
संस्थागत संरचना:
VDA के नियमन के लिए एक समर्पित नियामक संस्था की स्थापना की जानी चाहिए, जो नवाचार को बढ़ावा देते हुए जोखिमों को नियंत्रित करने में सक्षम हो।
वित्तीय साक्षरता:
क्रिप्टोकरेंसी के निवेशकों के लिए वित्तीय साक्षरता अभियान शुरू करना आवश्यक है, जिससे वे इस क्षेत्र में जुड़े जोखिमों को समझ सकें।
टेक्नोलॉजी का उपयोग:
ब्लॉकचेन जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग नियमन के लिए किया जा सकता है, जो ट्रांसपेरेंसी और डेटा सुरक्षा को बढ़ावा देगा।
भविष्य की राह
भारत में वर्चुअल डिजिटल एसेट्स को लेकर नियामक दिशा स्पष्ट नहीं है। लोकसभा के उत्तर ने यह संकेत दिया है कि अभी सरकार इस पर विचार-मंथन कर रही है और कोई समयरेखा तय नहीं है। हालांकि, भारत जैसे उभरते बाजार के लिए यह जरूरी है कि वह इस विषय में तेजी से कदम उठाए।
नवाचार को बढ़ावा देने और निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं है। लेकिन, यदि सरकार एक समग्र और समयबद्ध नियामक ढांचा तैयार करती है, तो भारत न केवल अपने आर्थिक हितों की रक्षा कर सकता है, बल्कि डिजिटल वित्तीय क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की भूमिका भी निभा सकता है।
वर्चुअल डिजिटल एसेट्स का नियमन भारत के वित्तीय भविष्य को आकार देगा। लेकिन इसके लिए ठोस, विचारशील और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि देश नवाचार का केंद्र बन सके और आर्थिक स्थिरता बनी रहे।