नई दिल्ली।
रोहिणी कोर्ट की एक अदालत ने कहा है कि हिंदू शादी के मामले में अगर दोनों पक्ष एक ही धर्म के हैं, तो पवित्र अग्नि का सातवां फेरा होते ही पूरी तरह से कानूनी रुप से शादी वैध मानी जाएगी। अदालत ने एक शख्स को उसकी पत्नी द्वारा लगाए गए रेप, जालसाजी और चोरी के आरोपों से बरी करते हुए यह टिप्पणी की।
फास्ट ट्रैक कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह ने मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘इस मामले में दोनों पक्ष हिंदू हैं। कानून के अनुसार अगर दोनों पक्ष हिंदू हैं तो पवित्र अग्नि के चारों ओर सातवां फेरा पूरा होते ही उनका विवाह अस्तित्व में आ जाता है। इस मामले में शादी और फेरे पूरे हुए हैं। इसलिए मंदिर अधिकारियों द्वारा मैरिज सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया। ऐसा करना कोई कानून तोड़ने जैसा नहीं है।
अदालत ने आदेश में कहा गया है कि केवल कानून द्वारा स्थापित अदालत (यानी पारिवारिक अदालत) को ही कानूनी रूप से वैध विवाह से तलाक देने की शक्ति है। इसमें कहा गया है कि अभियोक्ता और मामले के गवाहों में से एक जो कि आर्य समाज मंदिर के एक ट्रस्टी हैं उन्हें गलत फहमी है कि जब तक मंदिर के अधिकारियों द्वारा मैरिज सर्टिफिकेट नहीं जारी किया जाता, ये शादी कानूनी रूप से वैध नहीं है।
महिला का आरोप है कि 2013 से 14 के बीच रोहतक के रहने वाले गौरव मलिक नाम के शख्स ने उसके साथ रेप किया और लाखों रुपये ठगे। अदालत ने कहा कि महिला ने कथित तौर पर चुराए गए गहनों का कोई बिल अदालत में पेश नहीं किया। इसके अलावा कोई ऐसा बयान या पुख्ता सबूत भी पेश नहीं किया गया जिससे आरोपी के खिलाफ अपराध सिद्ध हो सके।